पुण्य कमाने के लिए एक सक्षम गाड़ी की भी जरूरत है। मैं इसलिए कह रहा हूं कि अगर गाड़ी अच्छी नहीं होगी तो चार धाम की दुर्गम पहाड़ियों पर आप फतेह कैसे कर पाएंगे। मेरे परिवार में अब स्कॉर्पियो भी खास मायने रखती है क्योंकि इसने मेरे माता-पिता को चार धाम की सफल यात्रा करवाई। अगर आपने अब तक चार धाम नहीं किया और जाने की योजना बना रहे हैं तो पहले इसे जरूर पढ़ें।
उम्र के उस पड़ाव पर जब शरीर आपका साथ छोड़ने लगता है उस समय सबसे बड़ी परीक्षा होती है तीर्थ यात्रा। ये बात चाहे आप हिंदू हों या मुसलमान दोनों ही संदर्भ में कही जा सकती है। जब इतनी सुख सुविधाएं नहीं थीं तो उस समय जो लोग तीर्थ पर निकलते थे वो ये मानकर जाते थे कि शायद ही वो लौटकर वापस आएंगे। लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं लेकिन इतना आसान नहीं है तीर्थ करना खासकरके जब आपकी उम्र साठ पार कर चुकी हो और आप पूरी तरह से फिट न हों।
जब मेरे माता-पिता और चाचा-चाची को उत्तराखंड के चार धाम करने की जिम्मेदारी मिली तो मेरे दिमाग में सबसे पहला सवाल ये आया कि आखिर कौन सी ऐसी गाड़ी है जिसमें एक मंगलमय तीर्थ यात्रा की सके वो 5 लोगों के 7 दिनों के सामान के साथ। लगभग डेढ़ साल पहले मैं नार्थ-ईस्ट तवांग गया था और मेरे साथ थी महिंद्रा स्कॉर्पियो, इसलिए मैंने ज्यादा समय गाड़ी सेलेक्शन पर लगाने के बजाए स्कॉर्पियों को ही अपना तीन दिनों का साथी बनाने का फैसला किया। अक्तूबर माह मे की गई इस चार धाम की ड्राइव का पूरा अनुभव आइए आपको विस्तार से बताते हैं।
दिल्ली से हरिद्वार
मैंने जब अपनी यात्रा की रूपरेखा तैयार की तो उसमें मैंने कुछ इस तरह अपनी योजना बनाई। पहला दिन मुझे हरिद्वार रुकना था जहां रुककर दूसरे दिन हम सुबह गंगा स्नान के बाद आगे बढ़ते। तय समय के मुताबिक शाम को चार बजे हमने गाजियाबाद छोड़ दिया और पहुंच गए बाबा रामदेव के पतंजलि आश्रम। तीन घंटे की यात्रा जो लगभग 165 किलोमीटर की थी हमारे लिए बहुत आरामदायक रही और किसी को कुछ पता ही नहीं चला कि वो कब यहां पहुंच गए। यात्रा शुरू करने से पहले मेरे लिए जो सबसे बड़ा चैलेंज था वो था मेरे माता-पिता और चाचा-चाची का एक ऐसा अनुष्ठान जो किसी को भी पूरा करना आसान काम नहीं था। मैं आपको बतात चलूं कि मेरे घर के लोग अभी भी वो परंपरा फॉलो करते हैं जो सदियों पहले रिषि मुनि किया करते थे।
सीधे शब्दों में कहूं तो ये लोग न तो बाहर का खाते हैं और न ही किसी बाहरी व्यक्ति के हाथ का बना खाना खाते हैं। इसके चलते मुझे अपनी गाड़ी में सात दिन के लिए हिसाब से 5 लोगों का सामान रखना था व किचन लादना था। आपको जानकर हैरान होगी कि मैंने स्कॉर्पियो की डिग्गी में मैंने पिछली सीटें फोल्ड कर दीं और वहां ये सारा सामान रखा और ये सबकुछ इतने आसानी से आ गया जिसकी उम्मीद स्वयं मैंने नहीं की थी। इस गाड़ी के डिग्गी में इतना सामान था जिसे अनलोड करने में लगभग 15 मिनट लग रहा था। लेकिन चारों धाम की चढ़ाई शुरू करने से पहले हम सबने एक आरामदायक नींद ली और सुबह जल्दी उठने का प्रण लेकर सो गए।
हरिद्वार से यमुनोत्री
आपको बताते चलें कि यमुनोत्री तक गाड़ी नहीं जाती। इसलिए हमारा पड़ाव था जानकी चट्टी। हरिद्वार में आरती पूजा करने के बाद हमने प्रस्थान किया यमुनोत्री के लिए। हरिद्वार से यमुनोत्री की दूरी लगभग 222 किलोमीटर की है। इस दूरी में पांच किलोमीटर की पैदल चढ़ाई भी शामिल है। लेकिन अक्तूबर माह में ऑफ सीजन होने के नाते भीड़ नहीं रहती और आप आराम से अपनी यात्रा कर सकते हैं। अमूमन लोग हरिद्वार से आकर यहां जाने के लिए पहाड़ में चलाने का अनुभव रखने वाले ड्राइवरों को हायर करते हैं। लेकिन मेरे लिए ये जरूरी नहीं था क्योंकि ऑटो जर्नलिज्म के पेशे ने इतना परिपक्व बना दिया है कि मैं कहीं भी ड्राइव कर लेता हूं। हरिद्वार से मसूरी तक पहुंचने में लगभग 35 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई मिलती है लेकिन बोझ तले दबी मेरी स्कॉर्पियो अपने मजबूत टॉर्क और शक्ति के साथ मुझे एक अलग ही आत्मविश्वास दे रही थी। मसूरी से ठीक पहले पेट्रोल पंप पर मैंने गाड़ी के टैंक को फुल करवा लिया।
आपको एक ज्ञान देता चलूं कि कभी भी आप पहाड़ में ड्राइव करें तो ध्यान रहे जहां भी पंप मिले वहां अपनी गाड़ी का टैंक जरूर फुल करवा लिया करें। वैसे उत्तराखंड में पेट्रोल पंप का नेटवर्क अब बढ़िया हो गया है। मसूरी से कैमिटी फाल होते हुए बारकोट का रास्ता जाता है। लेकिन यहां से रास्ते काफी संकरे हो जाते हैं और ये रास्ते इतने संकरे हैं कि अगर सामने से कोई बड़ी गाड़ी आ जाए तो रास्ता देने के लिए थोड़ा वक्त लगता है। यहां पर ब्रेक और पावर दोनों की जरूरत होती है। इसके पहले मैंने स्कॉर्पियो से तवांग की यात्रा की थी और मुझे कोई दिक्कत नहीं आई थी इसलिए मैंने चार धाम यात्रा के लिए भी इसी गाड़ी को चुना और मेरा फैसला एकदम सही साबित हुआ। महिंद्रा की ये गाड़ी किसके जीवन में क्या मायने रखती है मुझे नहीं पता लेकिन ये मेरे दिल के बेहद करीब है जिसकी वजहें लिखने बैठूंगा तो कई मैग्जीन के पन्ने कम पड़ जाएंगे। पहाड़ी रास्तों पर सबसे ज्यादा जो खुश थे उसमें सबसे पहला नंबर स्कॉर्पियो का था दूसरे पर और तीसरे पर मेरी मां। बाकी के तीन यात्री संकट से घिरे हुए थे क्योंकि घुमावदार रास्तों में अभ्यस्त न होने के कारण इन लोगों को वोमिट हो रहा था।
बारकोट से जानकी चट्टी तक काफी खराब रास्ता मिला लेकिन ऑफरोडिंग पर फतेह करते हुए देवभूमि अपनी गाथा लिखते हुए एक शूरवीर की तरह स्कॉर्पियो सबसे आगे हमें वहां लेकर पहुंची जो हमारी मंजिल थी और वो था जानकी चट्टी। यहां से पांच किलोमीटर ऊपर पैदल चढ़ाई करके हमने यमुनोत्री के दर्शन किए। यहां तक सबकुछ सही रहा और हमने तय समय के अनुसार हमने यमुनोत्री दर्शन करने के बाद जानकी चट्टी से आगे की यात्रा आरंभ कर दी। अब हमारी अगली मंजिल थी गंगोत्री।
यमुनोत्री से गंगोत्री
जानकी चट्टी से गंगोत्री की कुल दूरी 220 किलोमीटर है। लेकिन अब पूरा रास्ता पहाड़ी था और मेरे लिए ये रास्ता आसान नहीं था क्योंकि गाड़ी में बैठे मेरे पिता जी और चाचा को काफी दिक्कत हो रही थी। मैंने अपनी मंजिल लेकिन गंगोत्री ही सेट करके रखी थी। स्कॉर्पियो पूरी बुलंदी के साथ अपनी अगली मंजिल के तरफ बढ़ रही थी लेकिन गंगोत्री से लगभग 90 किलोमीटर पहले इन लोगों का धैर्य जवाब दे गया और हमारी यात्रा में एक रात और जुड़ गया। एक हाईवे होटल पर मैंने गाड़ी को अनपैक किया और खाना बनवाने में मदद की और एक रात्र विश्राम के बाद दूसरे दिन सुबह उत्तरकाशी से आगे बढ़ गया। इसी बीच मुझे एक मैसेज डिस्पले हुआ जिसमें पता चला कि बाईं ओर पीछे के टायर में हवा कम हो रही है। मुझे जल्द ही कोई पँक्चर बनवाने का प्वाइंट चाहिए था जो कि मिल नहीं रहा था क्योंकि सुबह इतने जल्दी पहाड़ पर कोई पंक्चर लगाने का काम नहीं शुरू करता। लेकिन सौभाग्य से हमें एक पंक्चर वाला मिल गया जहां पता चला कि एक स्लो पंक्चर है। टायर रिपेयर करवाकर मैं आगे बढ़ गया।
दिक्कत हो रही थी और ऊपर से मौसम खराब हो रहा था पर मैंने गाड़ी नहीं रोकी और 9 बजकर 45 मिनट पर गंगोत्री में पहुंच गया। आपको बताते चलें कि यहां तक आप गाड़ी से आ सकते हो और कोई चढ़ाई यहां नहीं होती। रास्ते में आपका स्वागत ढ़ेर सारे झरने करेंगे। ये बहुत ही खूबसूरत जगह है। सड़क सीमा संगठन की बनाई सड़कों की तारीफ किए बगैर आप नहीं रह सकते। जिन कठिन रास्तों से ये सड़कें निकली हैं वो लाजवाब व काबिले तारीफ है। जैसे ही हमने दर्शन पूरा किया मौसम काफी खराब होने लगा और बर्फबारी शुरू हो गई और मैंने बिना देर किए यहां से नीचे उतरना शुरू कर दिया। अब मेरी अगली मंजिल थी केदारनाथ। लेकिन रास्ता इतना आसान नहीं था। क्योंकि इसी बीच मुझे पता चला कि मेरे पास इतना ही डीजल बचा है जिससे मैं महज 99 किलोमीटर जा सकता हूं। लेकिन रिजर्व लगने के बावजूद मैं उत्तरकाशी तक एक पेट्रोल पंप तक पहुंच गया और मेरी गाड़ी एक टैंक में पहाड़ पर लगभग 450 किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी थी।
गंगोत्री से केदारनाथ
गंगोत्री से केदानाथ जाने के लिए आपको उत्तरकाशी वापस आना ही पड़ता है। यहां से केदारनाथ की कुल दूरी लगभग 321 किलोमीटर की है। आपकी गाड़ी गौरीकुंड तक जा सकती है। लेकिन आपको बताते चलें गौरीकुंड तक महज कुछ गाड़ियों को ही जाने देते हैं मेरी गाड़ी वहां तक कैसे पहुंची ये मुझे नहीं पता शायद इसलिए कि मैं जर्नलिस्ट हूं और दूसरी वजह थी ऑफसीजन का होना जिससे ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं थी। लेकिन ये यात्रा बहुत मुसीबत वाला था क्योंकि इतनी लंबी दूरी एकदिन में खासकरके पहाड़ों में तय करना आसान नहीं। उत्तरकाशी से 25 किलोमीटर ऊपर आकर हमने एक होटल लिया और एक बार फिर से रात्रि विश्राम के लिए रुक गए। अगर आप इस महीने में यात्रा करेंगे तो सबकुछ आपको सस्ता मिल जाएगा। पूरी चार धाम यात्रा में हमने किसी भी होटल रूम का किराया 500 रुपये से अधिक नहीं दिया। इस तरह से चौथे दिन हमने दो धाम की यात्रा पूरी कर ली थी।
केदारनाथ तक का रास्ता काफी हद तक का खराब है पर बड़ी गाड़ी होने का यहां हमें फायदा मिला। लैंडस्लाइडिंग की वजह से हमें लगभग 1 घंटे का इंतजार भी करना पड़ा लेकिन फाइनली हम 8 बजे गौरीकुंड पहुंच गए और जहां से केदारनाथ धाम की चढ़ाई शुरू होती है वहीं एक होटल बुक किया। केदारनाथ आप पैदल, घोड़ा, पालकी या फिर हेलीकॉप्टर से भी जा सकते हैं। पैदल चढ़ाई 16 किलोमीटर की है। अगर आप हेलीकाप्टर से जाना चाहते हैं तो आप फाटा ही रुक जाएं वहीं ये सर्विस आपको मिलेगी। लेकिन मेरे माता-पिता व चाचा चाची ने ये यात्रा घोड़े से पूरी की। जबकि मैंने ट्रैकिंग करके ये यात्रा पूरी की। केदारनाथ में जिस समय हम पहुंचे काफी बर्फबारी हो रही थी लेकिन भीड़ न होने के कारण लगभग 20 मिनट की पूजा मंदिर के अंदर संपन्न हुई। और इस तरह से कठिन चार धाम में से एक केदारनाथ की भी यात्रा हमने पूरी कर ली।
केदारनाथ से ब्रदीनाथ
गौरीकुंड से बद्रीनाथ की दूरी 221 किलोमीटर की है। लेकिन बद्रीनाथ धाम में कोई चढ़ाई नहीं करनी पड़ती ये हमारे लिए खुशी की बात थी। बद्रीनाथ में जब हम पहुंचे तो यहां तापमान शून्य से 7 डिग्री नीचे था और हाई एल्टीट्यूड होने के वजह से सबको दिक्कत हो रही थी। इसीलिए सुबह जल्दी उठकर पिंडदान करके व दर्शन करके हमने बिना देरी किए हरिद्वार के तरफ प्रस्थान कर दिया। क्योंकि यहां पर रुकना सबको थोड़ा कठिन हो रहा था। रात के 9 बजे हम दोबारा हरिद्वार पतंजलि आश्रम पहुंच गए और इस दौरान जो हमारा सफर पूरा हुआ उसमें कुछ भी ऐसा नहीं था जिसमें गाड़ी की वजह से कोई दिक्कत आई हो। इस तरह से लगभग 7 दिन में हमने लगभग 1800 किलोमीटर का कठिन सफर पूरा किया। इस पूरी यात्रा में मुझे किसी ने ओवरटेक नहीं किया, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमारे पास एक सक्षम एसयूवी थी जिसने बीते दो दशकों में खुद को प्रूफ किया है। मेरे लिए स्कॉर्पियो एक ट्रू ऑफरोडिंग गाड़ी है।
एक सुझावः-
ये कठिन यात्राएं जिनका सुखद अनुभव जवानी में ही लिया जा सकता है इसलिए चार धाम की यात्रा फिट रहते हुए पूरी कर लें।