डोन्ट वी अ गामा इन द लैंड ऑफ लामा…..।
अगर आप कभी लेह लद्दाख गए होंगे या फिर जाएंगे तो लाइनें आपका स्वागत कहीं न कहीं से किसी न किसी रूप में जरूर करेंगी। इसका हिंदी में मतलब होता है ये भूमि लामा की है यहां पहलवानी काम नहीं आती, मतलब साफ है आप अपनी उन बेवकूफियों से दूर रहें जिसके जरिए आप दूसरों पर रौब झाड़ना चाहते हैं। इस बार लेह मैं तब गया जब लामा की इस भूमि पर पहुंचने वाले सारे सड़क मार्ग बंद थे। वायुमार्ग से जब मैं यहां पहुंचा तो जहाज में ही घोषणा लेह की धरती पर कदम रखने से पहले मिल गई कि बाहर का तापमान माइनस 16 डिग्री है, आप चौबीस घंटे आराम करें और थोड़ा-थोड़ा पानी पीते रहें जिससे आपका शरीर हाई एल्टीट्यूड के अनुकूल ढल जाए। सबने मना किया इस मौसम में लेह जाने से लेकिन मैं गया क्यूंकि मुझे हिस्सा लेना था महिंद्रा एडवेंचर के स्नो सर्वाइर में। इस आलेख में हम आपको कराएंगे एक ऐसी ड्राइव जिसमें शामिल है सिर्फ बर्फ की चादर ओढ़े सफेद सड़कें, महिंद्रा थार व 17 हजार फीट से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित वरीला पास। क्या था ये चैलेंज, पढ़ें इस अनोखी ड्राइव की लाइव दास्तान।
कैसे की तैयारी
आप कितने मजबूत क्यूं न हो लेकिन अगर लेह के मौसम व एल्टीट्यूड को समझने में लापरवाही बरती तो आप झेल जाएंगे। जब मैं ये लाइन लिख रहा हूं तो आपको याद दिला देता हूं इस आलेख की पहली लाइन। मैंने अपनी तैयारी माइनस 20 डिग्री के लिए की। इसके लिए खरीदे विंटर जैकेट, ऊनी मोजे, स्नो बूट, कैप, दो ग्लव्स,डायमॉक्स(हाई एल्टीट्यूड सिकनेस की टेबलेट)। आपको बता दूं आजकल ऐसे स्टोर बन चुके हैं जहां तापमान बताकर आप अपने जरूरत के सामान खरीद सकते हैं। गर्मी के सीजन में लेह जाना और विंटर में लेह जाना ये तो अलग-अलग वेदर हैं इसलिए तैयारी में कोताही कतई न करें। एक जरूरी बात और अगर आप यहां आते हैं तो-सिर दर्द, नींद न आना, शॉर्ट ब्रीदिंग की शिकायत हो सकती है अगर बेचैनी ज्यादा बढ़े तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। वैसे इन सभी बीमारियों का एक इलाज है 15 मिनट का ऑक्सीजन, जो कि यहां के प्राथमिक केंद्र पर मिल जाएगा या फिर हो सकता है ऑक्सीजन सिलेंडर आप जिस होटल में रुके हैं वही आपको उपलब्ध करवा दे।
दिल्ली से लेह
सर्दियों में लेह जाने के सारे पास बंद कर दिए जाते हैं आप यहां सिर्फ हवाई यात्रा करके ही पहुंच सकते हैं। लेह की सभी फ्लाइट सिर्फ दिल्ली से जाती हैं वो भी सुबह। मैंने सुबह 7 बजकर 20 मिनट की फ्लाइट ली और 8 बजकर 55 मिनट पर लेह पहुंच गया। माइनस 16 डिग्री की जमा देने वाली ठंड ने हमारा स्वागत किया। होटल पहुंचकर हमने कश्मीरी कावा पिया और चेकइन करके ब्रीफिंग शुरू होने से पहले आराम किया। शाम को साढ़े पांच बजे डॉक्टर ने आकर हमें यहां के वेदर को कैसे फेस करना है , क्या करना है क्या नहीं करना है इन सबके बारे में डिटेल्ड ब्रीफिंग देते हुए एक चीज से सुनिश्चित कर दिया कि आपको जो भी समस्या होगी वो ऑक्सीजन की कमी के कारण होगी। डॉक्टर ने बताया कि आप कितने भी मजबूत क्यूं न हों माउंटेन सिकनेस आपको हो सकती है इसलिए हमेशा इसके लिए तैयार रहें व थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी पीते रहें, ओवर ईटिंग न करें।
स्नो चेन क्यूं है जरूरी
ड्राइव शुरू होने से पहले हमने सीखा की टायर पर स्नो चेन कैसे लगाते हैं। जहां बर्फबारी बहुत ज्यादा होती है वहां स्नो से पार करने का मात्र एक रास्ता रहता है स्नो चेन। लेह लद्दाख में हर किसी को ये लगाना आता है लेकिन अगर आप मैदानी इलाके से हो जहां स्नो का नामोनिशान नहीं देखने को मिलता उनके लिए ये बड़ी चुनौती रहता है। हमने यहां पर सीखा स्नो चेन लगाना। स्नो चेन एक सामान्य लोहे की जंजीर जैसा होता है जो कि सीढ़ी जैसा दिखता है और इसे टायर पर अच्छे से बांध दिया जाता है जिसके वजह से स्नो पर बिना फिसले गाड़ी आगे बढ़ती रहती है। लेकिन महिंद्रा थार के 4 एल में हमने पूरा 50 किलोमीटर का स्नो ट्रैक पूरा कर लिया पर हमें स्नो चेन की जरूरत नहीं पड़ी।
लेह से वरीला पास
स्नो सर्वाइवर सिर्फ एक दिन का चैलेंज था जिसमें लेह से वरीला पास जाकर वापस लेह आना था। वरीला पास की ऊंचाई समुद्र तल से 17 हजार 216 फीट है। लेह से इसकी दूरी लगभग 75 किलोमीटर है। पास तक पहुंचने के लिए 25 किलोमीटर हमें स्नो पर गाड़ी चलाना था। दोनों तरफ से मिलाकर ये स्नो ड्राइव हो गई 50 किलोमीटर की। और बस यही था हमारा स्नो सर्वाइर चैलेंज। छह थार के काफिले को लीड कर रहे जाने माने रैली ड्राइवर हरी सिंह ने रेडियो पर हिदायत दी कि आप अपनी गाड़ी को 4 एल में कर लीजिए। 4 एल तब यूज किया जाता है जब आप चढ़ाई चढ़ रहे होते हैं या फिर उतर रहे होते हैं। इससे गाड़ी के चारों पहियों को शक्ति मिलती है वो भी ढेर सारे टॉर्क के रूप में और आप बिना फंसे आगे बढ़ते रहते हैं। स्नो पर फिसलन बहुत होती है इसलिए दिल और दिमाग दोनों का इस्तेमाल बेहद जरूरी हो जाता है। 4 एल में ड्राइव करते वक्त गाड़ी सेकंड गियर में चलती है। हम जितना ऊपर जा रहे थे तापमान उतना ही नीचे लुढ़क रहा था। हमारी गाड़ी में रखी पानी की बोतलें कब जम गईं पता ही नहीं चला। तभी अचानक हमारे 4 एल डिस्इंगेज हो गया और गाड़ी इधर-उधर खिसकने लगी लेकिन हमारे साथ चले रहे टेक्निशियन ने इसे दुरुस्त कर लिया। इस तरह से बिना स्नो चेन का इस्तेमाल किए हम वरीला पास पहुंच गए और वहां हम सबने यहां तक आराम से पहुंच जाने के लिए ऊपर वाले को शुक्रिया अदा किया। क्यूंकि सड़कें हों या फिर सामने नजर आने वाली चीजें सबकुछ लिपटी थी बर्फ की सफेद चादर में। पास पर कभी भी ज्यादा देर नहीं रुकना चाहिए और हमने वापस अपनी राह पकड़ी और शाम साढ़े पांच बजे वापस होटल पहुंच गए।
थार का बोलबाला
लेह में ऑफरोडिंग के रूप में महिंद्रा थार भगवान बनी हुई है। इस गाड़ी के साथ आप कोई भी चैलेंज ले सकते हैं ये सार्थक हुआ पूरी तरह से क्यूंकि हाई एल्टीट्यूड, माइनस 20 डिग्री तापमान, फिसलन भरा स्नो ट्रैक इन सब जगहों पर इस गाड़ी में कोई दिक्कत नहीं आई।
क्या सीखा
किस तरह से स्नो के साथ पेश आना चाहिए।
एल्टीट्यूड से तालमेल बिठाने के लिए क्या करना चाहिए।
गाड़ी के डीजल को फ्रीज होने से कैसे बचाना चाहिए।
ऑफरोडिंग में किस तरह के ट्रिक फॉलो करने चाहिए।
काफिले के साथ किस तरह का अनुशासन निभाना चाहिए।
स्नो चेन कैसे लगाना चाहिए।
टीम वर्क कैसे होता है।
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