रजत राणा

विश्व पटल पर अगर जनरल मोटर्स की बात करें तो दुनिया के टॉप फाइव ऑटो मोबाइल कंपनियों में ये शुमार है। लेकिन इसके बावजूद लाख कोशिशों के बावजूद जीएम भारत में खुद को मजबूत नहीं रख पाया। दुनिया भर को शानदार गाड़ियों का तोहफा देने वाली जीएम की शेव्रोले का पत्ता यहां से साफ हो गया। आखिर क्यों इतनी बड़ी कंपनी होते हुए भी ये भारतीय ग्राहकों को लुभाने में असफल रही, पिछले 15 वर्षो में भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में रहते हुए भी ये अपनी वो छाप यहाँ नहीं छोड़ पाई जैसी और देशों में है। वित्त वर्ष 2017-18 में शेव्रोले ने भारतीय बाजार से अपनी विदाई की घोषणा की। जब कंपनी ने यहां से अपना कारोबार समेटा उस समय कंपनी के प्रोडक्ट पोर्टफोलियो में Trail Blazer, Cruze, Tavera, Beat जैसी बढ़िया गाड़ियां मौजूद थीं। लेकिन अगर कुछ बातों का शेव्रोले ध्यान रखती तो आज उसे ये दिन नहीं देखना पड़ता।

भारतीय ग्राहकों को क्या चाहिए?

  • यहाँ पर ग्राहक कार की खरीद के साथ उसकी आफ्टर सेल सर्विस पर भी ध्यान देता है जिसमें भारतीय कंपनी मारुति को महारत हासिल है और आने वाले निकट समय में भी इसका कोई और प्रतिद्वंदी नहीं है यही वजह है आज 3 साल अनलिमिटेड किलोमीटर वारंटी का फंडा जोरों पर है और विदेशी ब्रांड्स भी इसकी नकल कर रहे हैं।
  • कार को खरीदने के बाद उसका मेनटेनेंस, स्पेयर पार्ट भी एक बड़ा विषय है, विदेशी कंपनी इस को गंभीरता से नहीं लेती, मारुती के मुकाबले उसके बराबर की और दूसरे ब्रांड्स के स्पेयर पार्ट्स और सर्विस काफी महंगी है और विदेशी कंपनियों की पालिसी में पारदर्शिता नहीं है, लेकिन टोयोटा जैसे ब्रांड ने इसे समझा और आज भारतीय बाजार के प्रीमियम सेगमेंट का वो लीडर है।
  • कंपनी का नेटवर्क भी उसके प्रोडक्ट्स की सेल बढ़ाने में सहायक होता है जिसे मारुती ने बखूबी समझा और इसी वजह से आज मारुती के 1820 सेल्स ऑउटलेट्स 1471 शहरों में मौजूद है (स्रोत्र – विकिपीडिया) जबकि विदेशी ब्रांड्स कुछ बड़े शहरों और मेट्रो सिटीज तक ही सीमित रह जाते हैं

प्रतिस्पर्धी बनना जरूरी
भारतीय बाजार में अपनी उपस्तिथि दर्ज करने के लिए विदेशी कंपनी कॉस्ट कम्पेटिटिवेनेस में भी मात खा जाती है, छोटी कारों की बिक्री भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर का ड्राइव इंजन है जिसमे विदेशी कंपनी पीछे रह जाती है
विदेशी ब्रांड्स भारत में कॉस्ट इफेक्टिव नहीं है इसका कारण सेफ्टी फीचर तथा नयी टेक्नोलॉजी का समावेश है जिसके लिए शायद भारतीय कस्टमर अभी तैयार नहीं है और गवर्नमेंट पॉलिसीस भी इसके लिए कुछ हद तक रेस्पोंसिबल है. मारुती जो की भारत में ऑटोमोबाइल जायंट है वो भी सेफ्टी फीचर्स की अनदेखी कर रहा है जबकि विदेशी ब्रांड्स के लिए सेफ्टी नॉर्म्स उनकी पालिसी का हिस्सा है एयर बैग्स, एंटी ब्रैकिंग सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक ब्रैकिंग सिस्टम, ट्रैक्शन कण्ट्रोल, स्टेबिलिटी कण्ट्रोल आदि अभी भी भारतीय ग्राहकों के लिए कंपल्सरी नहीं है, इन्हे ब्रांड्स वैरिएंट्स के हिसाब से ऑप्शनल रखा जाता है जबकि इस विषय में गवर्नमेंट और इंडियन कोर्ट दोनों ही ने सेफ्टी नॉर्म्स के प्रति सजग रहने की हिदायत ऑटोमोबाइल मेकर्स को दी है। शायद यही वजह है की मारुती अपनी जगह बड़े प्रीमियम सेगमेंट में नहीं बना पाया है. अपने ब्रांड को कॉस्ट इफेक्टिव बनाये रखने के लिए कंपनी को लगातार सामान की क्वालिटी के साथ कोम्प्रोमाईज़ करना पड़ता है।

ऐसा पहले भी हो चुका है
एक बड़ी इन्वेस्टमेंट के साथ कोई भी कंपनी बाजार का रुख करती है लेकिन अगर ऐसे मैं वो ग्राहकों की नबज़ नहीं पकड़ पाए तो हालत चेवरोलेट जैसी ही होती है, हालाँकि इससे पहले भी कोरियाई ऑटो मेकर देवू का भी यही हश्र हुआ था इंडियन मार्किट में अच्छी पकड़ बनाने के बाद उसे भी यहाँ से पलायन करना पड़ा फर्क सिर्फ इतना है पहले भारतीय ग्राहकों के पास इतने ऑप्शन नहीं थे जबकि अब कम्पनीज के साथ ब्रांड्स की भी कोई कमी नहीं है ऐसे हालात में बाजार में अपनी पहचान बनाये रखना और नए कंस्यूमर्स को जोड़ना एक बड़ा लक्ष्य है।

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